मैं,बस मैं हूं।।
मुझे रिश्तों में मत बांधो,
बेटी हूं ,बहन हूं,पत्नी हूं,मां भी हूं,पर सबसे पहले मैं इंसान हूं।
एक इंसान जो तुम जैसी है,मत बांधो इसे महानता की आशाओं में,
महान नहीं हूं मैं,बस तुम जैसी एक इंसान हूं मैं।
एक दिन का ये सम्मान ,हर समय चाहती हूं,
बाकियों से पहले एक औरत की नजरों में औरत का सम्मान चाहती हूं।
आज़ादी चाहती हूं उन आंखों से जो पीछा करती है रास्ते में,उन बातो से जो मुझे समाज की रीतियों में तौलती है,उन अपेक्षाओं से जो महानता बदले मुझसे मेरी खुशियों का सौदा करना चाहती हैं।
आज़ादी चाहती हूं समाज के झूठे आदर्शो से जिसमें सिर्फ मुझे ही त्याग करना है।
आज़ादी चाहती हूं उन सभी कर्ताव्यो से जिन्हें रिश्तों के बदले मुझपे थोपा गया हैं।
नहीं हूं मैं दया की देवी,ना ही हूं मैं प्यार की मूरत,
मैं बस एक इंसान हूं,तुम जैसी।।
और चाहती हूं कि तुम भी मुझे इंसान ही समझो ।।
मैं बस मैं हूं।।