तीन पहियों पर अपने परिवार की रोटियां सेकता वो ।
अपनी कमजोर टांगे और जर्जर हो चुके बूढ़े शरीर से ,
मुसाफिरों को मंज़िल तक पहुंचाकर ,अपनी ज़िन्दगी के पहियों को आगे बढ़ाने की भरसक कोशिश करता वो ।
धूप,बारिश और जाड़ा ,सब से दोस्ती गांठ कर ,
पानी की कुछ घूंट से अपनी मजबूरियों को बहलाता वो ।
वो एक रिक्शावाला।।
बहुत कुछ सिखा गया , हरपल आगे बढ़ने की आस ,
तूफानों से लड़कर जीतने की हिम्मत,
मुश्किलों के आगे घुटने न टेक कर ,उनसे लड़ने की सीख ,
ज़िन्दगी का आइना दिखा गया ,
वो एक रिक्शावाला।।
Bahut sundar
thanks a lot 🙂
उत्तम रचना। अच्छा लगा।
thanks 🙂 @ajit
Nice poem ,👌👌
thanks anupama 🙂
To good niharika mam
thanks 🙂 rekha mam
Vo ek rikshawala……very nice